लेखक:
विश्वनाथ मुखर्जी
23 जनवरी, 1924 को काशी (वाराणसी) में जनमे विश्वनाथ मुखर्जी काशी की ही मिट्टी में पले-पुसे, बड़े हुए। बंगाली परिवार से होते हुए भी वे खाँटी बनारसी रहे। शक्ल-सूरत, पहनावा और बोली से उनके भोजपुरी होने का भ्रम हो जाता था। 1942 में उन्होंने कथाकार के नाते हिन्दी में प्रवेश किया और फिर हास्य-व्यंग्य लेखक एवं पत्रकार के रूप में वे हिन्दी पाठक-जगत् के चहेते बन गये। वे ‘अजगर’, ‘तरंग’ और फिर ‘आपका स्वास्थ्य’ के सहायक सम्पादक भी रहे। आधा दर्जन से अधिक पुस्तकों के लेखक श्री मुखर्जी को उनकी कृति ‘काशी : अतीत और वर्तमान’ के लिए तत्कालीन उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पुरस्कृत किया गया। अत्यन्त सामाजिक होने के कारण वेतन का हिस्सा वे मित्रों की तीमारदारी, दूसरों की मुसीबत और अपनी ‘कमबख़्ती’ को अर्पण करते रहे। नसीहतों के जवाब में उन्होंने सिर्फ़ इतना ही फ़रमाया : ‘तू भी अय नासेह! किसी पर जान दे हाथ ला उस्ताद! कहो कैसी कही!’ |
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बना रहे बनारसविश्वनाथ मुखर्जी
मूल्य: $ 12.95
बना रहे बनारस : काशी के हृदय की यात्रा आगे... |